लगातार बारिश और गर्रा-खन्नौत नदियों के उफान ने शाहजहांपुर को संकट की गहराइयों में धकेल दिया है। हालात इतने बिगड़े कि दिल्ली–लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पानी भरने से यातायात घंटों ठप रहा। सबसे गंभीर स्थिति तब बनी जब राजकीय मेडिकल कॉलेज के परिसर में भी पानी घुस गया और मरीजों को सुरक्षित मंजिलों पर ले जाना पड़ा।
राजमार्ग पर घंटों जाम
सुबह से ही बरेली मोड़ और कटरा रोड के पास हाईवे पर पानी का बहाव शुरू हो गया। नतीजतन, सैकड़ों गाड़ियाँ फँस गईं। प्रशासन ने भारी वाहनों की आवाजाही रोकने का आदेश दिया, मगर यात्री घंटों तक जाम में फँसे रहे। कई लोग तो पैदल ही अपनी मंज़िल तक पहुँचने को मजबूर हुए।
अस्पताल बना राहत शिविर
राजकीय मेडिकल कॉलेज, जहाँ मरीजों को इलाज की उम्मीद रहती है, अब खुद बाढ़ का शिकार हो गया। भूतल पर बने वार्डों और ओपीडी में पानी घुस गया।
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गंभीर मरीजों को ऊपरी मंजिलों पर शिफ्ट किया गया।
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सामान्य मरीजों को जल्द डिस्चार्ज कर घर भेज दिया गया।
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डॉक्टर और नर्सें पानी भरे गलियारों में घुटनों तक डूबकर ड्यूटी करती दिखीं।
मोहल्लों की हालत
सुभाषनगर, खिरनीबाग, अब्दुलागंज और अन्य निचले इलाकों में पानी का जमाव लोगों के लिए आफ़त बन गया। कई घरों के दरवाजे तक पानी चढ़ गया है।
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परिवार छतों पर शरण लिए बैठे हैं।
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बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठप हो गई।
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दुकानें बंद, रोज़गार ठप और खाने-पीने की समस्या गहराती जा रही है।
मदद को आगे आए लोग
इस मुश्किल घड़ी में इंसानियत भी सामने आई। युवाओं ने ट्रैक्टर-ट्रॉली और नावों से फँसे लोगों को सुरक्षित पहुँचाया। मोहल्लों में महिलाएँ सामूहिक रूप से खाना बनाकर ज़रूरतमंदों को बाँट रही हैं।
प्रशासन की कोशिशें
जिलाधिकारी ने राहत कार्यों की निगरानी तेज कर दी है।
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NDRF और SDRF की टीमें नावों से लोगों को निकाल रही हैं।
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मेडिकल टीमों को दवाइयों के साथ प्रभावित क्षेत्रों में भेजा गया है।
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बाढ़ राहत केंद्रों पर खाने-पीने का इंतज़ाम किया गया है।
सवाल भी उठ रहे हैं
हर साल बाढ़ आने के बावजूद स्थायी इंतज़ाम क्यों नहीं किए जाते?
लोगों का कहना है कि जब तक नदी किनारों की मजबूती, नालों की सफाई और जलनिकासी की ठोस योजना नहीं बनेगी, तब तक यह त्रासदी बार-बार लोगों की ज़िंदगी में दस्तक देती रहेगी।