“बंगाल में मतदाता सूची में नए सिरे से संशोधन की तैयारी के बीच मतुआ क्षेत्र में दहशत और संदेह का माहौल, राजनीतिक पार्टियों को नुकसान की आशंका, 40 सीटों पर समीकरण उलट सकते हैं ! बनगांव और रानाघाट क्षेत्रों की 25-40 % मतदाता संख्या प्रभावित हो सकती है”
कोलकाता 01 / 11 / 2025 संतोष सेठ की रिपोर्ट
बंगाल में मतदाता सूची में नए सिरे से संशोधन की तैयारी के बीच मतुआ क्षेत्र में जहां दहशत, गुस्सा और संदेह का माहौल है। वहीं राजनीतिक पार्टियों को मतुआ समुदाय बड़ा फैक्टर है क्योंकि 40 के करीब विधानसभा की सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में हैं।
राजनीतिक पार्टियों को शरणार्थियों के इस गढ़ में एसआईआर के तहत बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंका है। सीमावर्ती जिलों उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना की 40 से अधिक विधानसभा सीटों पर हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ की निर्णायक उपस्थिति रखते हैं।
निर्वाचन आयोग द्वारा 2002 के बाद से पहली बार फर्जी, मृत तथा अपात्र मतदाताओं को बाहर करने के वास्ते एसआईआर कराए जाने के निर्णय ने इस समुदाय के बीच पहचान एवं नागरिकता को लेकर चिंताएं फिर से पैदा कर दी हैं।
जिन लोगों के नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं हैं, उन्हें अब पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज देने होंगे। लेकिन दशकों से बांग्लादेश से विस्थापित मतुआ समुदाय के हजारों मतदाताओं के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं और इससे न केवल इस समुदाय के लोग बल्कि तृणमूल तथा भाजपा भी बेचैन है, जिनके बीच लंबे समय से उनका समर्थन हासिल करने के लिए होड़ चल रही है।
इस तरह से है असमंजस और चिंता
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बनगांव और रानाघाट संसदीय क्षेत्रों की 25-40 प्रतिशत मतदाता संख्या प्रभावित हो सकती है। मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा कि असमंजस और चिंता की स्थिति है।
2014 से पहले आए लोगों के लिए भी कोई स्पष्टता नहीं है। मान लीजिए कोई 2005 या 2013 में आया है, तो उसका नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं है। जो लोग 31 दिसंबर 2014 के बाद आए हैं, वे सीएए के तहत आवेदन भी नहीं कर सकते। वे क्या करेंगे?

केंद्रीय मंत्री और भाजपा की ओर से मतुआ समुदाय के प्रमुख चेहरे शांतनु ठाकुर ने कहा, ‘अगर शरणार्थी मतुआ के नाम हटाए जाते हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है।
उन्हें नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।’ भाजपा विधायक सुब्रत ठाकुर ने माना कि 2002 से 2025 के बीच आए लोग दस्तावेज नहीं दिखा पाएंगे। उन्होंने अनुमान लगाया कि राज्यभर में 30 से 40 लाख शरणार्थी सीएए के तहत पात्र हो सकते हैं।
2 नवंबर को बैठक

तृणमूल की राज्यसभा सदस्य ममता बाला ठाकुर ने अगले कदमों की रूपरेखा तैयार करने के लिए दो नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में समुदाय के नेताओं की एक बैठक बुलाई है।
उन्होंने कहा मतुआ लोगों के नाम हटा दिए जाएंगे क्योंकि 2002 के बाद आए कई लोगों के पास दस्तावेज नहीं हैं और वे मतदान का अधिकार खो देंगे।

